Friday, September 21, 2012

जले पर नमक

Courtesy 
http://illuminatedmagnet.blogspot.in/
इतना दुःख क्यों पाल  रखा है?
आपका कुत्ता तो नहीं मरा!
ऊपरी तीम - झाम बस दिखावा है,
ये  बुरा मानने  वाली बात ही नहीं
क्या हुआ जो हमने नए कपड़े पहन लिए?
जन्मदिन तो आप ही का है!


Monday, September 10, 2012

मिटटी के जाये


Courtesy 
http://pottedhistory.blogspot.in 
कौन सी मिटटी के जाये हैं आप!

ऊपर वाले ने शायद आप को पत्थर से तराशा होगा;
ज़रा भी मोम न लगाया आपको गढ़ने में।
फिर भी आप सूरज के ताप से 
गलने का दावा करते है

हमें भट्टी की आंच में तपाया गया है
 जब तक घिस रहे है, घिस जायेंगे।
जिस दिन आपसे टकरायेंगे,
उस दिन बिखर जायेंगे। 

मिटटी में जब मिल जायेंगे,
तब देखेगे तमाशा कुदरत का:
जिस दिन आप चट्टान के सामने होंगे
और ज्यादा देर टिक नहीं पाएंगे।

Saturday, September 8, 2012

मेरी ज़िन्दगी की किताब

टूटी कलम से लिखी गयी है 
मेरी ज़िन्दगी  की किताब 
कहीं घिसी हुई लिखाई,
कहीं स्याही का तालाब,
कागज़ के कोने फटे हुए, 
खुरचन और काटकूट का सैलाब
भगवान् से शिकायत की
तो ये मिला जवाब-
"जितनी खराब ऊपर से है,
उतनी ही अदभुत अन्दर से;
बस, यह सोच कर खुश होता हूँ,
कम से कम उबाऊ तो नहीं ये किताब!"

Friday, September 7, 2012

चिकित्सा पद्धति


यहाँ सिर दर्द की दवा नहीं मिलती,
गठिया का इलाज नहीं है मेरे पास
चीर-फाड़ से लगता है बहुत डर; 
इतना ज़ोर से न लीजिये सांस

सुश्रुत से हमनें कुछ नहीं सीखा,
फिर भी लोग बड़ी दूर से आते हैं
अरे, थोड़ी देर बैठिये तो यहाँ पर; 
आइये थोड़ा-सा दर्द बाँट लेते हैं

Thursday, September 6, 2012

आदत सी जो हो गयी है

धूप में चलते-चलते काले पड़ गए
वहां पहुँचने की आस में प्यास भूल गए
भूखे  पेट तो कई रातें बिताई हैं
कुछ और पल रुकने में  बुरा क्यों मानते
गिरते पड़ते दरवाज़े तक आ तो गए
लेकिन वहाँ बस एक ताला लटकता पाया
और क्या करते,वापस चल दिए
खोकर न पाने की आदत सी जो हो गयी है


Monday, August 27, 2012

चादर का कोना


चादर का कोना फट रहा था;
सिलाई ही तो चाहिए थी।
सुई, धागा, कैंची, सब मेरे पास थे,
फिर भी तुम दर्जी के पास चले गए।
दर्जी ने तो चादर रफ्फू कर दी,
ऊपर से पैसे भी बेशुमार लिए।
पर दुःख इस बात का था
कि हुनर मेरे पास भी है।

Monday, May 14, 2012

किराये का मकान


हसरत तो बेशक़ आपकी बड़ी थी;
हमने मंज़ूरी नहीं दी,
पर मना भी कब किया
आप और हम इंतज़ार करते रह गए;
आप पूछते तो सही,
घर आपको किराये पे दे देते

Friday, May 4, 2012

बेवर्ली


मेरे बगल में बैठी बेवर्ली
टुक-टुक टाइप किया करती है।
अपनी गुड़ियों में खुश रहती,
कहानियाँ सुनाया करती है।
मॉनिटर पर तस्वीरें देख
सपने सजाया करती है।
मेरी कविता समझ न पाए,
पर मुझे देख मुस्कुराया करती है।

Monday, April 30, 2012

मोहल्ले के नए डॉक्टर के लिए


अब आप बताएँ इस हाल में किया क्या जाए;
दिल में बसे दर्द को कैसे मिटाया जाए।
सुबह माँ ने बोला, "दर्द पेट से उठा है,"
दोस्त बोलतें हैं हमें इश्क़ हुआ है।
ग़ालिब भी पूछ्तें हैं इस मर्ज़ की दवा,
वैद जी का कहना है- "पेट में है हवा!"
किस की सुनें मुझे समझ नहीं आता है, 
हर कोई अपनी राय देकर चला जाता है।
अब शायद आप ही मेरी कुछ मदद कर पाएं;
क्या पता, आप मेरी पीड़ा को समझ पाएं।

Tuesday, January 31, 2012

Calm Disregard


You made me wail
You made me weep
You finished my whole life
With a single sweep
I want nothing from you
Now that you can see
All I want now is
Some sugar in the tea.

चिड़िया का बसेरा


जीते हैं इसी उम्मीद पर,
एक दिन हमारा भी आएगा।
शाख पर पत्ते होंगे,
पत्तों का साया भी आएगा।
साए के नीचे होगा घरौंदा,
घरौदे के बागीचे में

गुलमोहर के पेड़ पर

नन्ही चिड़िया का बसेरा भी आएगा,
एक दिन हमारा भी आएगा।

मेरे आँचल से बंधा हुआ


लम्हे आँखों के सामने

नाचने लगे,

नए ख्वाब दिखाने लगे।

लगा कि जैसे ये मेरे पास ही रहेंगे,

मेरे आशियाने में सजेंगे ।

जी चाहता था इन्हें समेट लूं,

अपने नीले आँचल में छुपा लूं।

हाथ बढाया तो लम्हे हवा हो गए,

मेरे आँचल के सिरे में बंधने से पहले

न जाने कहाँ चले गए ।

आँचल अब खाली गांठों से भरा था ,

मन तो दुःख और पीड़ा से हरा था ।

तभी कहीं कोने से एक नन्हा पल बोला,

"जाने दो लम्हों को, मुझे दिल में जगह दो,

तुम्हारा छोटा सा दिल उन्हें समेट नहीं पायेगा।

तुम्हारे आँचल में केवल मैं रह सकता हूँ,

मैं वही हूँ जो नीले रंग को गहरा कर पायेगा!"

चैन की नींद

कांटा कुछ इस तरह चुभा था

कि लहू रिस कर अरसा बीत गया।

रह गयी रगों में अब लहू की प्यास है ,

जिस्म मरा नहीं पर ज़िन्दगी की आस है।

लहू बह चुका, खारा पानी रुकता नहीं,

सूख कर मर चुके हैं हम, अब घाव भरता नहीं।

सारा लहू तो पी लिया, खारा पानी चूसते हो।

अब तरस खाओ, ताकत तो छोड़ दो,

रेगिस्तान बना दिया हमें, रेत को भी ठूंसते हो!

कब्र खोदने के लिए औज़ार तो छोड़ दो।

इतना लहू नही कि ताकत भरती जाए,

कब्र इतनी बड़ी नहीं की चैन कि नींद आ जाए।