Thursday, September 6, 2012

आदत सी जो हो गयी है

धूप में चलते-चलते काले पड़ गए
वहां पहुँचने की आस में प्यास भूल गए
भूखे  पेट तो कई रातें बिताई हैं
कुछ और पल रुकने में  बुरा क्यों मानते
गिरते पड़ते दरवाज़े तक आ तो गए
लेकिन वहाँ बस एक ताला लटकता पाया
और क्या करते,वापस चल दिए
खोकर न पाने की आदत सी जो हो गयी है


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