टूटी कलम से लिखी गयी है
मेरी ज़िन्दगी की किताब।
कहीं घिसी हुई लिखाई,
कहीं स्याही का तालाब,
कागज़ के कोने फटे हुए,
खुरचन और काटकूट का सैलाब।
भगवान् से शिकायत की
तो ये मिला जवाब-
"जितनी खराब ऊपर से है,
उतनी ही अदभुत अन्दर से;
बस, यह सोच कर खुश होता हूँ,
कम से कम उबाऊ तो नहीं ये किताब!"
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