बैठे हैं निठल्ले
कभी छत को तो कभी फर्श को ताका करते हैं
कभी छत को तो कभी फर्श को ताका करते हैं
दिमाग तो शैतान का घर नहीं
लेकिन खाली है
पर खाली भी तो नहीं
बस सामान बिखरा है
थोड़ी रेत, थोड़ी मिट्टी
थोडा रंग, थोड़ी गिट्टी
थोडा रंग, थोड़ी गिट्टी
ईंट, पत्थर, लकड़ी, लोहा
सब फैला है दिमाग में
बन रहा है धीरे-धीरे मेरा हवाई किला।